किसे खोने का गम करता है रे बन्दे
वो, जो तेरा कभी था ही नहीं
वो, जो तेरा कभी था ही नहीं
जिसे कल कहते थे अपना
आज वो गया कहाँ
कभी चाहा था इम्तिहान में पास होना
कभी चाही बस एक नौकरी
कभी चाहा पैसा
कभी घर की इच्छा की
कभी एक सुंदर स्त्री की...
कितना चाहा
कितना पाया
कभी इस, कभी उस समस्या में खुद को उलझाया
फिर भी ये बेचैनी कैसी
इन चाहतों के पीछे
जो तृप्ति तूने चाही
वो तो फिर भी न मिली
जहाँ भी है
वहीँ रुक जा
और सोच, देख...
कहाँ जा रहा है तू
किसकी तलाश तुझे
किसकी तलाश तुझे
सब मिलने के बावजूद
'और' की तड़प क्यों?
खोने का डर क्यों?
ये बैचनी क्यों?
वो आनंद, वो प्रेम है कहाँ
जो इस बैचनी को दूर कर
तेरी आत्मा को असीम तृप्ति दे ...
जाग जा
और तलाश उसे
है वो झरना तेरे भीतर ही...
जाग जा
और तलाश उसे...
wah wah kya baat hai
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