वृक्ष भी नाचें, छाया भी नाचें
धीमी-धीमी धूप में कोई कलाकृति बनायें...
कभी तट से टकराएँ, कभी वापिस मिल जाएँ
समुन्द्र की लहरें भी छलकती जाएँ...
पंछी कोई तेरे संग सुर लगाये
कोई साथ तेरे उड़ान भर जाये...
कहीं दूर घंटियाँ गुनगुनाये
कहीं खिड़कियाँ दरवाज़े खड़खड़ये...
झूमे मेरा अंतर भी तेरे संग-संग
एक डोरी में तू सबको बांध
मग्न मस्त बहती जाये
बहती जाये...
good one :)
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