February 9, 2010

खेल या सच...


क्या खेल है रचाया तूने
समझ में आये ...
कभी लगे है सच,
कभी सपना सा...

बैठी हूँ ...
जानने को हूँ इच्छुक...
तेरा खेल ही है,
या मेरा सच...

1 comment:

Thanks for your message :)