July 19, 2016

स्वयं को भ्रमित पा रही हूँ

जन्मो से जिसे खोज रही हूँ
जब वह मिलने को है
तो भाग रहो हूँ, टाल रही हूँ
स्वयं को भ्रमित पा रही हूँ

क्या है जिसे पकड़ पकड़
स्वयं को जानने का अवसर
टाल रही हूँ
स्वयं को भ्रमित पा रही हूँ

बरसों के प्यासे को
जब परमात्मा मिलने को है
तो क्यों इस धन्यभागी अवसर को
टाल रही हूँ
स्वयं को भ्रमित पा रही हूँ

क्या ये प्यास, प्यास ना थी
या फिर स्वयं को जानने की चाह, चाह ना थी
ऐसा हो सकता है क्या की
जीने है प्यास जगाई
वही छलाँग भी लगवा दे
सभी भ्रम तुद्वा दे
सभी झूठ सत्य में सॅमा दे

नही और ब्रह्म में रहूंगी
ऐसे सौभाग्यशाल्ली अवसर को यूँ नही खोअन्गि
प्रेम में समर्पण हो
जो होना है, हो रहा है
होने दूँगी

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