तुझसे कैसे आस करून मैं
प्रेम की
प्रेम जो मेरे भीतर है
आज़ादी की
आज़ादी जो मेरा हक है
आस तुझसे करना ही
कारन है मेरे दुःख का
मीरा को क्या आस थी किसना से ?
उसे तो बस प्रेम ही था
कबीरा ने क्या चाहा, क्या माँगा अपने राम से ?
उसने तो बस प्रेम में स्व: को गवाया
चाह है मुझमे पर
तुझमे एक मजनू को देखने की
जैसे मैं तेरे प्रेम में लैला हो जाती हूँ
पर शायद मीरा न होई अभी
मीरा कबीरा तो अनंत से प्रेम कर बैठे थे
मैं अनंत के एक अंश की दीवानी हूँ
शायद तभी मैं लैला हूँ
मीरा न होई अभी...
My God...!!!
ReplyDeleteBohot pyari kavitaaa....bade hi pyaar se likhi hui :) .....WowwWW deee...keep it up
thank u sooo much nishu :)))
ReplyDeleteDid u write this? Good one !
ReplyDeletehaanji varu ji
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ReplyDeleteMaasi, meera and kabira both were very good student of life...and pinnacle of perseverance...they too might had start with speck of dust and then loved wholeness...its a journey...you have put my thoughts on roll... i am googling LAILA MAJNU
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