किस से हों नाराज़ हम
सब खुद से ही हैं खफा-खफा
खुले आसमान को देखो तो
उड़ते इन पंछियों को देखो तो
दिखती नहीं है उलझन कोई
दिखती नहीं कोई नाराज़गी
खुद में ही उलझे हो
तो दीखता है सब उलट सुलट
छूना हो जिसे प्रेम से
कर लेते हैं उसी से फुरक़त
एहसास अगर हो जाये मुझे
एहसास अगर हो जाये तुझे
उस असीम का
बह रही है जो
मुझ में
तुझ में
ताश के किसी महल सी
बिखर जाए गी ये नाराज़गी
मेरी तुझसे
तेरी मुझसे
मेरी मुझसे...
किस से हों नाराज़ हम
सब खुद से ही हैं खफा-खफा
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