July 9, 2012

घना माया जाल है

घना माया जाल है 

ये दिखा के 
वो दिखा के
छीन लिया
जो भी दिया
सब छीन लिया

हम करते रहे 'मेरा - मेरा'
तुने दिलाया एहसास 
कुछ नहीं है 'मेरा'
सब तरफ तू, सब कुछ तेरा

जो भी है अभी, लगता अपना
हो जाने वाला है, बस एक सपना

कितने चेहरे पीछे छूठे
कितनी जप्फियाँ, कितने शिकवे 

नए चेहरों से मिलते हुए
हो रहा  फिर वही एहसास
छूट जायेगा, ये सब भी
कल नहीं तो आज

इस घने माया-जाल में
उलझते जाना है, कितना आसां 
'मैं' के इस खेल में 
फंसते जाना है, कितना आसां 

एक गलती कितनी बार दोहराएंगे 
मेरा- मेरा करते, 
कब तक युहीं,
जिए जायेंगे 

एक पल लगता है 
आ गया सब समझ 
अगले पल लगता है
फिर किया था खुद को ही भ्रमित

उलझे बहुत माया-जाल में इस 
पाई ना कोई तृप्ति 
पाया ना कोई सुख 


 जाल का इस
होगा कहीं तो केंद्र
दिखता  होगा जहाँ से 
सब एक खेल अजब


रह जाना है जब 
सब खाली का खाली ही 
तो देखें जाएँ एक बार नजारें 
माया-जाल के केंद्र से उसी 
.

1 comment:

Thanks for your message :)