दिल मैं है जो धन्यवाद
कैसे कहूँ
क्या लिखूं
कैसे बयान करूँ
बचपन से हूँ देख रही आपको
मस्त मौला सा
संसार में रह रहा
एक सन्यासी सा
हर फ़र्ज़ निभा रहा
हर काम कर रहा
कमल के फूल भाँति
अन्छूआ सा
राज़ इसमे है क्या
बचपन से हूँ सोच रही
आपको जिसने कहा बुरा
मैने उन्हे ना चुना
और धन्य हुई
प्रेम के अपार धन से
सदा आपका होना ही काफ़ी रहा
अंतर की प्यास को जगाए रखने को
मुझे इस रास्ते पर चलाए रखने को
आपके मार्ग-दर्शन ने
आईने पर पड़ी धूल
को हटाया
दो होने के वहम से
है आज़ाद करवाया
बचपन से हूँ सोच रही
ऐसा अजूबा कैसे बनाया
क्यों सब आप से आनद में नही
पर मैं चाहती थी ऐसा होना
बचपन से ही
संसार में रहना
सन्यासी की तरह जीना
पता नही ऐसे कभी
क्या अच्छे कर्म हुए मुझसे
जो इतनी धन्यभागी हुई
इस जीवन में
बचपन से आपको जान
स्वयं को ही जान रही
आपके जानम दिवस पर
प्रार्थना है ये परम से
आपकी रोशनी,
और बहुत दिए जलाए
आपका आलोक
बहुतों की मदद करे
उस एक को जानने में
जो है ही
बचपन से हूँ देख रही
तुझमे परमात्मा को
- तनु श्री
Dedicated to chachu on his birthday
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